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Disability : Causes, Prevention, prevalence & demographic profile at National and Global in Hindi || राष्ट्रीय और वैश्विक विकलांगता के कारण, रोकथाम, व्यापकता और जनसांख्यिकीय प्रोफाइल

Disability : Causes, Prevention, prevalence & demographic profile at National and Global in Hindi || राष्ट्रीय और वैश्विक विकलांगता के कारण, रोकथाम, व्यापकता और जनसांख्यिकीय प्रोफाइल:

Table of Content (toc)

Causes and Prevention of Disability || विकलांगता का कारण और निवारण:

Causes of Disability || विकलांगता का कारण :

विकलांगता होने में कोई न कोई कारण अवश्य होता है जब कोई व्यक्ति या बच्चा किसी समस्या से ग्रसित हो जाता है तो उसका कोई न कोई कारण अवश्य है होता है। यह कारण निम्नलिखित

(i) Pre- Natal

(ii) Pari Natel (Natal)

(iii) Post Natal

(i) Pre- Natal: 

Pre-Natel वह समय होता है जब बच्चा मां के गर्भ में पल रहा होता है  इस समय शिशु अपने सम्पूर्ण विकास हेतु मां पर निर्भर होता है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को अपने बच्चों को विकलांग होने से बचाने के लिए निम्न बातों पर ध्यान पैदा होने देना आवश्यक है जिससे वाली संतान किसी असमानता या विकलांगता से ग्रसित न हो, ये कारण निम्नलिखित हैं 

  1. गर्भवती महिला की उम्र 18 वर्ष से कम या 40 वर्ष से अधिक न होना। (Under Age and Over Age Mother)
  2. गर्भवती महिला का कुपोषण का शिकार होना (Lack of Nutrition)
  3. गर्भावस्था के दौरान प्रथम तीन महीने में एक्सरे तथा अल्ट्रासाउन्ड जैसे किसी विकिरण से प्रभावित होना।(X-Ray and Ultra Sound)
  4. गर्भवती महिला को किसी शारीरिक या मानसिक सदमा से गुजरना पड़े तो पैदा होने वाली संतान विकलांग हो सकती हैं (Physical and Emotional Trauma)
  5. बिना किसी चिकित्सकीय परामर्श के अत्यधिक मात्रा में दवाओं का सेवन करना। (High Drugs taken)
  6. किसी प्रकार की नशीली दवाओं तथा धूम्रपान महिला के प्रयोग से गर्भवती को बचना चाहिए ।
  7. नजदीकी रिश्ते या समरक्त विवाह से बचना चाहिए। (RR-Factor) or. (Same Blood Group)
  8. गर्भवती महिला को उचित समय पर टीकाकरण कराना। (Vascination )
  9. गर्भवती महिला को चिकित्सक की देख रेख में हमेशा रखना चाहिए ।

(ii) Peri Natal / Natal:

यह वह अवस्था होती है जब प्रसव काल का समय होता है। जन्म के समय की अवस्था होती है जब सामान्यतः जन्म से एक सप्ताह तक मानी जाती है उस अवस्था में विकलांगता होने के निम्न लिखित कारण हो सकते हैं

  1. निर्धारित समय से पूर्व या समय के पश्चात् बच्चे का जन्म होना । (Premature or Post Mature Baby )
  2. नवजात शिशु में जन्म के समय Oxygen की कमी होना । (Lack of Oxygen)
  3. जन्म के समय शिशु का न रोना या देर से रोना । (Late Birth Cry)
  4. शिशु का वजन सामान्य से कम या अधिक होना । (Low Birth Weight Or High Birth Weight) 
  5. बच्चे का अभिनाल गले से लिपटा होना। (Codded Baby)
  6. प्रशिक्षित नर्स या डाक्टर का प्रसव के दौरान न होना । (Untrained Nurse ar Doctor) 
  7. जन्म के समय शिशु को कोई संक्रामक बीमारी होना । (Bacterial and Vistal infection)
  8. जन्म के समय शिशु का शरीर नीला पडना । (Blueness)

(iii) Post Natal: 

यह जन्म के बाद की अवस्था होती है। जन्म के बाद बच्चों में विकलांगता होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं

  1. जन्म के बाद बच्चे में किसी संक्रामक बीमारी ज्वर, का होना पीलिया । जैसे- चेचक, मस्तिष्क (Bactrial and Viral Infection)
  2. बच्चे के सिर में चोट लगना । 
  3. रोग प्रतिरोधक दवाओं का अत्यधिक मात्रा में या अधिक समय तक सेवन करना ।  
  4. बच्चे का सही समय पर टीकाकरण न किया जाना ।  
  5. बच्चे का कुपोषण का शिकार होना।

Prevention of Disability || विकलांगता की रोकथाम :

भारतवर्ष में विकलांगता की बढ़ती हुई मात्रा को देखकर उसे कम करने कें उद्देश्य की अवश्यकताओं  को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। रोकथाम के अन्तर्गत हम बच्चे की मां अर्थात् गर्भवती महिला के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे के बारे में पूर्ण जानकारी मिल सके। इस जानकारी से हम बच्चे में होने वाली सम्भावित विकलांगता को कम या दूर करने का प्रयास करते  हैं। यदि किसी कारणवश या अज्ञानतावश विकलांग बच्चे ने जन्म ले लिया हैं तो उसकी बढ़ती हुई समस्या को कम करने के लिए बच्चें के  माता- पिता को बच्चे से सम्बन्धित पूर्ण जानकारी दी जाती है। विकलांगता के सन्दर्भ में कुछ श्लोगन निम्नलिखित है

Prevention is better than Cure.

Earlier the diagnosis is better than the management.

Definition of Prevention


According to WHO : भारतवर्ष में विकलांगता का मुख्य कारण किसी भी प्रकार के संक्रमण की उपेक्षा करना तथा उसके बारे में अज्ञानता है। ऐसे व्यक्ति या समुदाय जिसकी सामाजिक आर्थिक स्थिति तथा अपर्याप्त स्वास्थ के प्रति जानकारी बच्चे के मां का पर्याप्त भोजन आदि सभी कारण बच्चे के विकलांगता के लिए जिम्मेदार है।

WHO के अनुसार रोकथाम के तीन स्तर बताया गया है -

  1. Primary Level 
  2. Secondary Level
  3. Tertiary Level.

Primary Level (प्राथमिक स्तर की रोकथाम)

प्राथमिक स्तर के रोकथाम के अन्तर्गत उन सभी कारणों को ज्ञात करने की कोशिश की जाती है जिसके कारण गर्भवती महिला को एक समस्या के साथ-2 सामना अन्य समस्याओं का करना पड़ता है।

गर्भावस्था के प्रथम तीन महीने में जब भ्रूण के विकास का क्रम चल रहा होता है उस समय किसी कारण वस भ्रूण के विकास में किसी प्रकार का नुकसान पहुंचे तो बच्चे में एक विकलांगता के साथ-2 अन्य विकलांगता होने की सम्भावना या खतरा बना रहता है। प्राथमिक स्तर के रोकथाम को तीन भागों में बांटा गया है-

(i) Pre-Natal Care ( जन्म पूर्व देखभाल )  
(ii) Pre- Natal Screening ( जन्म पूर्व जांच )
(iii) Genetic Counseling ( गुण सूत्रीय परामर्श ) 


(i) Pre-Natal Care

  1. गर्भवती महिला की गर्भाधारण की उम्र -18 वर्ष से कम या 40 वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
  2. गर्भाधारण के प्रथम तीन महीने में X-Rays, Ultrasound या अन्य किसी विकिरण के प्रभाव से बचना चाहिए।
  3. गर्भवती महिला को शारीरिक तथा मानसिक सदमा से बचना चाहिए।
  4. अत्यधिक मात्रा में चिकित्सकीय परामर्श के बिना दवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
  5. गर्भवती महिला का उचित समय पर टीकाकरण कराना चाहिए। 
  6. गर्भवती महिला को कुपोषण से बचना चाहिए।

(ii) Pre-Natal Screening

अजन्मे बच्चे में किसी प्रकार की असमान्यता होने पर चिकित्सक के परामर्श के अनुसार किसी प्रकार की विकिरण का प्रयोग करना चाहिए जिससे कि सम्भावित विकलांगता से बच्चे को बचाया जा सके।

(iii) Grenetic Counseling 

गुणसूत्रीय, विकार एक आनुवंशिकीय एवं विकृति है जिसका शत प्रतिशत उपचार नहीं कराया जा सकता, लेकिन कुछ विशेष जानकारी के अनुसार माता पिता को उचित जानकारी देकर होने वाले विकृति के अवसर को कम किया जा सकता हैं। गर्भावस्था के समय गर्भवती महिला को सन्तुलित आहार देकर कुपोषण की समस्या से बचाया जा सकता है।

यदि माता- पिता में से कोई एक असमान्य हो तो बच्चे में, 7% विकलांगता होने की सम्भावना हो सकती है   यदि माता- पिता दोनों असमान्य हों तो बच्चे में 14% विकलांगता होने की सम्भावना हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान महिला की देखभाल अच्छे ढंग से की जाये तो बच्चे में होने वाली सम्भावित विकलांगता को रोका जा सकता  है। अविभावक को यह सलाह दी जाती है कि वे संतान हीन जीवन व्यतीत न करें जिसमें गर्भाधारण के समय असामान्यता हो तथा माता पिता को चाहिए कि गर्भाधारण के समय विशेषज्ञ के द्वारा जांच के द्वारा यह पता कर ले कि बच्चा सामान्य है या असमान्य है। यदि बच्चा असमान्य हो तो गर्भपात करा लें। 

Secondary Level (द्वितीय स्तर की रोकथाम)

द्वितीय स्तर के रोकथाम के अन्तर्गत बच्चे में विकलांगता के लक्षण को देखकर चाहे वह जन्म के समय या जन्म के बांद इसकी पहचान कर उपचार का प्रयास किया जाता है। इसके अन्तर्गत शिशु में समस्या उत्पन्न होने पर या तो उसकी का समस्या उपचार कराते है या इस समस्या को नियन्त्रित करने प्रयास का किया जाता है। 

द्वितीयक स्तर के रोकथाम को 2 भागों में बांटा गया है -

  1.  High-Risk Register 
  2. High-Risk Child
1. High Risk Ragister

यह एक प्रकार से बच्चे के स्वास्थ से सम्बन्धित एक विवरण पुस्तिका होती है जिसमें बच्चे की सभी गतिविधियो का लेखा जोखा होता है। यह Ragister उस बच्चे से सम्बन्धित होता है जिसमें जन्म के समय कोई असमान्यता या विकलांगता पायी जाती है। 

2. High-Risk Child

High-Risk Register के अन्तर्गत आने वाले बच्चों को High Risk Child कहा जाता है इन बच्चों के लिए समुचित का देखभाल एवं इलाज की व्यवस्था की जाती है। 

जैसे-
  1. Pre-mature baby.
  2. Pro-long Labour Pain
  3. Codded Baby
  4. Blushers
  5. Sezemian Delivery. 
  6. Lack of Oxygen.

Tertiary Lavel (तृतीय स्तर की रोकथाम)


किसी व्यक्ति या बच्चे में विकलांगता हो जाने के बाद या किसी समस्या के उत्पन्न हो जाने के बाद जो रोकथाम की प्रक्रिया लागू की जाती है उसे तृतीयक स्तर की रोकथाम कहते हैं। अर्थात किसी बच्चे में विकलांगता आ जाने के बाद उसके विकलांगता के अनुसार उसे इलाज देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ना ही तृतीय स्तर रोकथाम कहा जाता है।

तृतीय स्तर के भाग को निम्न भागों में बांटा गया है-

(i) Early Identification

प्रारम्भिक अवस्था (0-3 Years) में च्चे के समस्या का जल्द से जल्द पहचान करना शीघ्र पहचान कहलाता है। शीघ्र पहचान से तात्पर्य है कि बच्चे की विकलांगता को 0-6 वर्ष की उम्र अथवा Critical Period ( कान्तिक काल ) में बच्चे की समस्या की पहचान की जाये तो इनकी समस्या को चिकित्सा या प्रशिक्षण द्वारा सुधारा जा सकता है ।

(ii) Parents Couseling(अभिभावक परामर्श): 

अभिभावक परामर्श का उद्देश्य है कि बच्चे का सर्वांगीण विकास करना । निःशक्त बच्चों में प्राय: ऐसी कई समस्यायें होती हैं जिसे दूर करने के लिए माता- पिता तथा शिक्षक मिलकर बच्चे के लिए कार्यक्रम निर्धारित करते हैं।

(iii) Special Education (विशेष शिक्षा): 

निः शक्त बच्चों को विशेष शिक्षा की आवश्यकता होती है क्यों कि यह बच्चे अपनी निः शक्तता के कारण सामान्य शिक्षा प्राप्त नही कर सकते । विशेष शिक्षा के लिए विशेष शिक्षक होते हैं जो इन बच्चों को उनकी समस्या के अनुरूप शिक्षण प्रशिक्षण देते हैं। 

(iv) Vocational Training (व्यवसायिक ट्रेनिंग):

निः शक्त बच्चे उम्र, लिंग, शारीरिक क्षमता, तथा पारिवारिक स्थिति को देखते हुए व्यवसायिक प्रशिक्षण द्वारा उचित व्यवसाय प्राप्त करते हैं जिससे वे व्यवसाय करके आत्मनिर्भर बन सकें तथा समाज की मुख्य धारा से जुड़ सकें ।

(v) Appropriate Rehabilitation Programme ( उचित पुर्नवास कार्यक्रम ) 

विकलांग बच्चों को उचित व उपयुक्त प्रबन्धन देकर तथा उसकी समस्या के अनुसार उन्हें बाधामुक्त वातावरण देकर समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है। 
 

Unit 1: Understanding Disability

1.1 Historical perspectives of Disability - National and International & Models of Disability || विकलांगता के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य - राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय और विकलांगता के मॉडल

1.2 Concept, Meaning and Definition - Handicap, Impairment, Disability, activity limitation,
habilitation and Rehabilitation || अवधारणा, अर्थ और परिभाषा - विकलांगता, हानि, विकलांगता, गतिविधि सीमा, पुनर्वास और पुनर्वास

1.3 Definition, categories (Benchmark Disabilities) & the legal provisions for PWDs in India ||भारत में दिव्यांगों के लिए परिभाषा, श्रेणियां (बेंचमार्क विकलांगताएं) और कानूनी प्रावधान

1.4 An overview of Causes, Prevention, prevalence & demographic profile of disability: National and Global || विकलांगता के कारण, रोकथाम, व्यापकता और जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल का अवलोकन: राष्ट्रीय और वैश्विक

1.5 Concept, meaning and importance of Cross-Disability Approach and interventions || क्रॉस-विकलांगता दृष्टिकोण और हस्तक्षेप की अवधारणा, अर्थ और महत्व

 

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