Benchmark Disabilities and the Legal Provisions for PWDs in India in Hindi || बेंचमार्क विकलांगताएं और भारत में पीडब्ल्यूडी के लिए कानूनी प्रावधान
Table of Content (toc)
International Classification and functioning of Disability || अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व कार्यात्मक स्तर पर निःशक्तता का वर्गीकरण:
विश्व स्वास्थय सभा (2001) में इस वर्गीकरण को मान्यता मिला। इसका सृजन 1980 में WHO एवं I.C.I.D.H. उपलब्धियों और संरचना पर हुआ। विश्व स्वास्थ संगठन ने 2002 में निःशक्तता का वर्णन व्यक्ति की कार्यकुशलता के आधार पर करना शुरू किया। जब क्षति व्यक्ति की कार्यशीलता को प्रभावित नहीं करती है, तो वह निःशक्त नहीं माना जायेगा। क्षति शरीर की कार्य संरचना की समस्या है। गतिविधि की सीमा में कठिनाई होती है जो व्यक्ति के कार्य व क्रिया को प्रभावित करती है दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि क्षति व्यक्ति को निःशक्तहीन नहीं बनाती है बल्कि अनुकूलित व सहयोगपूर्ण वातावरण में बाधा पहुंचाती है। International classification and functioning स्वास्थ व निःशक्तता के विचारों को अलग रुप से प्रस्तुत करता हैं। ICF का यह कहना है कि हर मानव के स्वास्थ में गिरावट आती है और किसी न किसी प्रकार की निशक्तता व्यक्ति के गतिविधियों को व परिवार तथा समुदायिक जीवन में इसकी भागीदारी को प्रभावित करता है।
Definition and categories of Disability as per National law || राष्ट्रीय नीतियों के अनुसार विकलांगता की परिभाषा एवं वर्गीकरण :
निः शक्त व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करने और देश को उत्पाद नागरिक बनाने के साथ-साथ राष्ट्र के निर्माण में इनकी पूरी सहभागिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक खोज उपलब्धि एवं कदम है।
- Disability as per PWD Act || निशक्त जन अधिनियम
- National Trust Act (NT Act 1999) || राष्ट्रीय न्यास अधिनियम
- Rehabilitation Council of India [R.C.I]
Categories of Disability as per PWD Act || निशक्त जन अधिनियम के अन्तर्गत विकलांगता का वर्गीकरण:
विकलांग जन अधिनियम सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पारित अधिनियम है। यह अधिनियम लोकसभा द्वारा
12 December 1995 में पारित किया गया। यह निः शक्त व्यक्तियों को समान अवसर प्रदान करने और देश को उत्पाद नागरिक बनाने के साथ-साथ राष्ट्र के निर्माण में इनकी पूरी सहभागिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक खोज उपलब्धि एवं कदम है। यह अधिनियम जम्मू- कश्मीर को छोड़कर पूरे राज्य में लागू किया गया। इस अधिनिय के अन्तर्गत निःशक्त व्यक्तियों के अधिकार एवं सुविधाओं के विषय में विस्तृत चर्चा की गयी है।
वर्तमान समय में मुख्य विकलांग आयुक्त का विकलांगता से अभिप्राय है कि किसी व्यक्ति में जिसकी विकलांगता 40% से अधिक है, विकलांगता की श्रेणी में आता हैं उस व्यक्ति को विकलांगता प्रमाण पत्र किसी चिकित्साधिकारी द्वारा प्रमाणित किया जाता है। P.W.D. Act व्यक्ति को उसके के अनुसार विकलांग विकलांगता के अनुसार छूट एवं सुविधायें प्राप्त कराने का प्राविधान है ।
विकलांग जन अधिनियम (PWD) 1995 के अनुसार विकलांगता को सात भागों में वर्गीकृत किया गया है
(i) दृष्टिबाधिता
(ii) श्रवण बाधिता
(iii) मानसिक मंदता
(iv) मानसिक रोग
(v) गामक अक्षमता
(vi) अल्पदृष्टिबाधिता
(vii) कुष्ठ रोग
(i) Visval Impairment || दृष्टिबाधिता :
दृष्टिबाधिता का अभिप्राय है, कि किसी व्यक्ति में दृष्टि सम्बन्धित समस्या का होना है। दृष्टिदोष होने की स्थिति में व्यक्ति पूर्ण रूप से देखने में अक्षम हो सकता है। जिसके फलस्वरूप व्यक्ति दृष्टि सम्बन्धी कार्यों को करने में पूर्ण रूप से असमर्थ होता है। यह समस्या कई प्रकार के कारणों के फलस्वरूप उत्पन्न होती है।
(ii) Hearing Impairment || श्रवण बाधिता:
श्रवण क्षतिग्रस्त या श्रवण बाधिता किसी व्यक्ति के कान में कोई समस्या होने के कारण होता है। इसका अर्थ यह है कि यदि किसी व्यक्ति में श्रवण 60 dB या इससे अधिक अक्षमता हो तो उसे श्रवण-बधिर कहते हैं। यह समस्या कान के तीनों भाग बाह्यकर्ण मध्य कर्ण या आन्तरिक कर्ण में बीमारी के किसी संक्रमण फलस्वरूप हो सकता है। जिससे श्रवण क्षमता नष्ट हो सकती है। श्रवण अक्षमता के कारण बच्चों मे वाणी एवं भाषा दोष भी उत्पन्न टो सकता है।
(iii) Mantal Retardation || मानसिक मंदता:
मानसिक मन्दता एक ऐसी अवस्था है जिसके परिणामस्वरूप किसी कार्य को करने में व्यक्ति मानसिक रूप से अक्षम होता है। मानसिक मन्दता के कारण अर्थात मानसिक मन्दता से ग्रसित बच्चों की शारीरिक विकास की तुलना में मानसिक विकास अपेक्षाकृत कम होता है।
दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मस्तिष्क के कोशिकाओं का क्षतिग्रस्त होना मानसिक मन्दता कहलाता है। इस प्रकार के बच्चे सामान्य तथा शैक्षणिक गतिविधियों में सामान्य बच्चों की अपेक्षा पिछड़े होते हैं जिसके फलस्वरूप इनका समाजिक समायोजन कम होता है।
(iv) Mental Illness || मानसिक रोग:
मानसिक बीमारी या मानसिक रुगणता के अन्तर्गत व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से विक्षिप्त हो जाता है। इस समस्या का अत्यधिक व्यक्ति समाज का मुख्य कारण व्यक्ति तनाव ग्रस्त होना है। ऐसे अपने आप को हतास निराश से अलग महसूस करते हैं।
(v) Locomotor Disability || गामक अक्षमता:
इसे गत्यात्मक अक्षमता भी कहते हैं । गत्यात्मक अक्षमता के कारण व्यक्ति में समन्वय नहीं पाया जाता है। गत्यात्मक समस्या में व्यक्ति का गामक विकास अवरुद्ध होता है जिसके कारण व्यक्ति एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में असमर्थता दिखाता है जिसके कारण व्यक्ति की शिक्षा तथा समाजिक समायोजन सही ढंग से नहीं हो पाता है।
(vi) Low Vision || अल्पदृष्टिबाधिता:
अल्पदृष्टि वाले व्यक्ति वें व्यक्ति होते हैं जो किसी वस्तु को देखने में वांहनीय रूप से अक्षम होता है। किसी दुर्घटना एवं बीमारी के कारण इस प्रकार की समस्या हो जाती है। इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति या बच्चे को किसी कार्य को करने के लिए सहायक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है।
(vii) Leprocy Cured || कुष्ठ रोग:
कुष्ठ रोग में व्यक्ति कें त्वचा में एक विशेष प्रकार का धब्बा (Spot) का पाया जाता है। जोकि सामान्य रंग से भिन्न होता है। इसमें खुजली एवं जलन नहीं होती है जिस स्थान पर यह समस्या होती है वहां की संवेदना शून्य हो जाती है। कुष्ठ रोग श्वसन तन्त्र द्वारा फैलता है। कुष्ठ रोग Micro Bacterial Lapry Virus द्वारा फैलता है। यह Virus त्वचा और नसों को प्रभावित करता है, समस्या से छुटकारा पाने के लिए शीघ्र पहचान द्वारा इस पर रोक लगाया जा सकता है।
Chapters of PWD Act 1995 || निशक्त जन अधिनियम के अध्याय:
निशक्तजन अधिनियम में प्रत्येक विकलांग व्यक्तियों की समस्याओं एवं अवश्यकताओं को देखते हुए 14 महत्वपूर्ण अध्याय है -
अध्याय - I : केन्द्रीय समन्वय समिति एवं कार्यकारी समिति
इस अधिनियम के अनुसार किसी भी कार्य करने हेतु केन्द्र सरकार द्वारा केन्द्रीय समन्वय समिति का गठन किया गया है। यह समिति निशक्तता के मामले में मुख्यतः राष्ट्रीय करती है और स्तर पर कार्य निशक्त व्यक्तियों के मार्ग में आने वाली समस्याओ को दूर करने के लिए निरन्तर प्रयास करती है। इस समिति में केन्द्रीय कल्याण मन्त्री अध्यक्ष होते है। राष्ट्रीय विकलांग संस्थाओं के निर्देशक इस समिति के सदस्य होते हैं। इस समिति में 23 सदस्य होते हैं जिनमें 5 सदस्य निशक्त व्यक्ति होते हैं ।
अध्याय- II : राज्य समन्वय समिति-
इस अध्याय के अन्तर्गत प्रत्येक राज्य एक राज्य समन्वय समिति का गठन करता है। राज्य के समाज कल्याण, विकलांग कल्याण मन्त्री इस समिति के अध्यक्ष होते हैं। इस समिति की बैठक हर छ: महीने पर होती है जिसमें गतिविधियों और कार्यन्वयन पर विचार किया जाता है।
अध्याय - III : निशक्त व्यक्ति
निशक्तता का प्रमाणीकरण चिकित्सा अधिकारी द्वारा किया जाता है यह प्रमाण पत्र उन्हें दिया जाता हैं जिनकी निशक्तता का स्तर 40% से अधिक पाया जाता है। इसके साथ-साथ जो संस्थायें निशक्त जनों के लिए पुर्नवास हेतु चिकित्सा, निदान, प्रशिक्षण अधिकारों की रक्षा आदि सेवाओं से रक्षित है उन्हें निशक्त जनों से सम्बन्धित संस्थाओं के रूप में प्रमाणित माना गया है।
अध्याय - IV : निशक्त जनों के लिए संस्थाओं को मान्यता
संस्थाओं को चलाने सुचारू रूप से के लिए उसे सक्षम अधिकारी द्वारा मान्यता लेना अनिवार्य होता है। यह पंजीकरण किसी भी संस्थान को निर्धारित समय पर के लिए प्रदान किया जाता है । समय: इस पंजीकरण का नवीनीकरण करना पडता है। हमारे देश के प्रत्येक राज्य में विकलांग कल्याण विभाग द्वारा यह प्रमाण पत्र प्रदान करने का प्रावधान है।
अध्याय- V : निशक्तता की रोकथाम एवं शीघ्र पहचान -
इस अध्याय के अन्तर्गत निशक्त की रोकथाम शीघ्र पहचान एवं निदान हेतु राज्य सरकार एवं स्थानीय निकाय अपनी आर्थिक तथा विकास क्षमता को घट में रखकर निम्न कार्य करेंगे:
- निशकलता की उत्पत्ति को जानने के लिए सर्वेक्षण परीक्षण तथा अनुसंधान करवाना
- निशक्तता की रोकथाम के विभिन्न उपाय का विकास करना ।
- विकलांगता के विषय में प्रचार- प्रसार का हेतु जन जागरुकता अभियान शुरू कर और प्रोत्साहित करना ।
- PHC में प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध करवाना
- निशक्तता के कारण और रोकथाम के उपायों के बारे में जनसंचार माध्यमों द्वारा जागरुकता फैलाना ।
अध्याय- VI शिक्षण / शिक्षा-
सरकार और स्थानीय प्राधिकरण द्वारा निशक्त बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान किये जाने का प्रावधान है। इस अध्याय के अन्तर्गत निशक्त जनों की शिक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गये। 18 वर्ष तक की आयु तक इन निशक्त बच्चों को उचित वातावरण में निशुल्क शिक्षा प्रदान किये जायेंगे। निशक्त जनों की शिक्षा के लिए उठाये गये महत्वपूर्ण कदम निम्नलिखित हैं
- निशक्त व्यक्तियों हेतु सामान्य विद्यालयों में एकीकरण शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयास करना ।
- निशक्त बच्चों के लिए उपर्युक्त परिवहन, भवन निर्माण करना तथा पाठ्यक्रम तैयार और परीक्षा प्रणाली में संशोधन सनिश्चित करना ।
- निशक्त बच्चों को निशुल्क पुस्तकें, छात्रवृत्ति पाठन , Uniform तथा सामग्री अन्य पठन उपलब्ध कराना ।
- निशक्त बच्चों के लिए व्यवसायिक प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध कराना ।
- निशक्त बच्चों के लिए सरकारी एवं निजी क्षेत्रों में विशेष विद्यालय उपलब्ध कराना।
- निशक्त बच्चों के स्कूल आने जाने के लिए यातायात कराना | के साधनों को उपलब्ध।
अध्याय- VII रोजगार
इस अध्याय के अन्तर्गत निशक्त जनों हेतु रोजगार सुनिश्चित करने के लिए विशेष व्यवस्था की गयी प्रत्येक राज्य सरकार 3 वर्ष से अधिक अन्तराल पर नये पदों के रिक्तियों के विषय में पता लगाती है। समस्त सरकारी नौकरीयों या प्रतिष्ठानों में निशक्त जनों के लिए 3% पद जिनमें से 1% आरक्षित किये गये हैं नेत्रहीन अथवा कम दृष्टि वालों के लिए, 1% श्रवण अक्षम तथा 17 गामक अक्षम या प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात जुड़े व्यक्तियों के लिए लागू किया गया ।
अध्याय - VII सकारात्मक कार्यवाही
सरकार द्वारा निशक्त व्यक्तियों को सहायक उपकरण एवं कृतिम उपकरण इस अध्याय के अन्तर्गत प्रदान किया जाता हैं। इसी प्रकार सरकार एवं उनसे जुड़े स्थानीय प्राधिकारी अधिसूचना जारी कर निशक्त व्यक्तियों को के लिए निम्नलिखित योजनायें प्रदान किया जाता है।
इन व्यक्तियों के लिए कार्य हेतु भूमि आवंटित करने की योजनायें भी लागू किया जाता है ।
- गृह निर्माण हेतु
- व्यवसाय तथा घर बनाने हेतु
- विशेष विद्यालयों की स्थापना तथा अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना ।
- निः शक्त उद्योग कर्मियों द्वारा कारखानों की स्थापना |
अध्याय- IX अविभेदीकरण -
इस अध्याय के अन्तर्गत परिवहन क्षेत्र में निशक्त व्यक्तियों हेतु विभिन्न सुविधायें प्रदान करने का प्रावधान है। इसके अनुसार रेलगाड़ियों, बसों, वायुयानों में विकलांग व्यक्तियों को सुविधा दी जायेगी। इन जगहों पर व्यवस्था इस प्रकार होनी चाहिए कि व्हीलचेयर में बैठे निः शकत व्यक्ति को किसी प्रकारकी समस्या का सामना न करना पड़े। सार्वजनिक रास्तों प्रतीक्षालयों तथा प्रसाधनों का निर्माण इस प्रकार करना चाहिए कि व्हीलचेयर द्वारा प्रवेश सम्भव हो। दृष्टिहीन व्यक्तियों के लिए सार्वजनिक रास्तों पर लाल बलियों के साथ 2 श्रवण संकेतों की भी व्यवस्था करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त लिफ्ट में ब्रेल तथा ध्वनि संकेतों की व्यवस्था किया जाना आवश्यक है।
अध्याय- X अनुसंधान एवं मानवसंसाधन विकास
निशक्तता के क्षेत्र में अनुसंधान एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किये जाने की अत्यन्त आवश्यकता हैं। अत: शासन लिखित क्षेत्रों तथा स्थानीय निकायों द्वारा निम्न में अनुसंधान व विकास को बढ़ावा दिया जायेगा।
- निशक्तता की रोकथाम
- पुर्नवास के अन्तर्गत समुदाय पुर्नवास कार्यक्रम सम्लित करना ।
- सहायक उपकरणों का विकास ।
- रोजगार की पहचान कराना ।
- कार्यालयों में सुधार ।
- सरकार द्वारा विश्वविद्यालयों, अन्य उच्च शिक्षा दिलाने वाली संस्थाओं, गैर सरकारी अनुसंधान संगठनों को आर्थिक सहायता देना जिससे यह संस्थायें शिक्षा पुर्नवास तथा मानव संसाधन विकास पर अनुसंधान कर सकें।
अध्याय- XI गम्भीर निःशक्त व्यक्तियों के लिए संस्था
गम्भीर रूप से नि शक्तता को गम्भीर व्यक्तियों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए समुचित संस्थाओं की स्थापना एवं उनका क्रियान्वन इस संस्था के अन्तर्गत आता है। यदि कोई संस्था गम्भीर रूप से निःशक्त व्यक्तियों के लिए कार्यरत हो तो प्रदेश सरकार उसे इस अधिनियम के अन्तर्गत गम्भीर रूप से निः शक्त व्यक्तियों के सेवाओं के लिए मान्यता दे सकती हैं इस प्रकार के संस्थाओं का लाभ वही लोग ले सकते हैं जो गम्भीर रूप से निःशक्तता से ग्रसित हों अर्थात् ऐसा व्यक्ति जो 80% या अधिक अर्थात् एक या एक से अधिक विकलांगता से ग्रसित हो ।
अध्याय- XII निःशक्त व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त
निःशक्त व्यक्तियों के अधिनियम के संचालन एवं क्रियान्तयन के लिए भारत सरकार ने अधिसूचना जारी कर निःशक्त व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त की नियुक्ति करेंगे। कोई व्यक्ति मुख्य आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए तभी योग्य होगा जब उसके पास पुर्नवास से सम्बन्धित विषयों का ज्ञान एवं कम से कम 15 वर्षों का अनुभव हो। मुख्य आयुक्त का वेतन, भत्ते तथा उनकी सेवा की अन्य शर्त केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। केन्द्र सरकार द्वारा मुख्य आयुक्त को उनके कार्यों में सहायता के लिए आवश्यक अधिकारी उपलब्ध कराती है।
मुख्य आयुक्त विकलांग जन के उत्तरदायित्व निम्न हैं
- राज्यसरकार में आयुक्तों के कार्य का समन्वय करना ।
- निःशक्त व्यक्तियों के अधिकारों एवं उनको उपलब्ध कराई गयी सुविधाओं के संरक्षण हेतु आवश्यक कदम उठाना
- अधिनियम के क्रियान्वयन के सम्बन्ध में केन्द्रसरकार को अभिलेख प्रस्तुत करना ।
अध्याय- XIII सामाजिक सुरक्षा
निःशक्त व्यक्तियों के सामाजिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से इस अधिनियम के अन्तर्गत सरकारी एवं स्थानीय प्राधिकारी अपने आर्थिक सामर्थ्य एवं विकास की सीमाओं के अधीन गैर सरकारी संगठनों (NGO) वित्तीय सहायता प्रदान कर सकते हैं। सरकार अपने निःशक्त कर्मचारियों के लाभार्थ अधि सूचना द्वारा हैं। एक बीमा योजना बना सकती
इस अधिनियम के अन्तर्गत निः शक्त व्यक्तियों समस्याओं को देखते हुए सामाजिक सुरक्षा हेतु निम्न कानून बनाये गये
- ऐसे निःशक्त व्यक्तियों के पुर्नवास के लिए गैर सरकारी संगठनों को आर्थिक सहायता प्रदान करना ।
- ऐसे निः शक्त व्यक्तियों को बेरोजगार भत्ता प्रदान करना, जो विशेष रोजगार कार्यालयों में एक वर्ष से अधिक की अवधि में पंजीकृत हैं और जिन्हें किसी भी लाभप्रद व्यवसाय में नियोजित नहीं किया जा सकता है ।
अध्याय- XIV अन्य -
इस अधिनियम के अन्तर्गत निः शक्त जनों हेतु आयोजित सुविधाओं के गलत उपयोग किये जाने पर दण्ड का प्राविधान है। इस अधिनियम के अन्तर्गत निर्धारित अधिकारों के अवहेलना के स्थान पर अपना शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
- केन्द्र में निः शक्त व्यक्तियों द्वारा मुख्य आयुक्त के पास ।
- राज्य में निःशक्त व्यक्तियों द्वारा आयुक्त के पास।
National Trust Act (NT Act 1999) || राष्ट्रीय न्यास अधिनियम :
निः शक्त जन अधिनियम 1995 के वर्ष 4 बाद राष्ट्रीय न्याय अधिनियम (National Trust Act : 1999) अस्तित्व में आया । यह अधिनियम सामाजिक न्याय एव अधिकारित मंत्रालय (MSJE) भारत सरकार नई दिल्ली द्वारा संचालित है यह अधिनियम स्वलीनता (Autisum), प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Polsy), मानसिक मंदता (Mental Retardation ), बहुविकलांगता (Multipal Disability) वाले व्यक्तियों के कल्याण हेतु कार्य करता है।
इसके अन्तर्गत विकलांगता को 4 भागों में बांटा गया है -
1. स्वपरायणता या स्वलीनता (Austism)
समस्या मनुष्य यह व्यक्ति की वह अक्षमता है जो के सामाजिक योग्यता को प्रभावित करती है। स्वलीनता का अर्थ है- स्वयं में लीन रहना । स्वलीनता को अंग्रेजी में Autism कहते हैं। Autism शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Autos से लिया गया है जिसका अर्थ है - खो जाना।
2. प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Polsy)
यह विकलांगता किसी व्यक्ति के मस्तिष्क में विकास के अवरुद्ध या अविकसित होने से होता है जिसमें व्यक्ति की बुद्धि असमान्य होती है। यह विकलांगता किसी भी कारण से (Pre Natal, Natal, Past Natal) हो सकता है। इसमें मस्तिष्क पर नियन्त्रण नहीं होता है।
3. मानसिक मंदता (Mental Retardation)
मानसिक मंदता एक अवस्था है जिससे मस्तिष्क की कोशिकाओं का क्षतिग्रस्त होना पाया जाता है, इस समस्या से ग्रसित बच्चों की शारीरिक विकास की तुलना में विकास अपेक्षाकृत कम होता है।
4. बहु विकलांगता (Multipal Disability)
बहु-विकलांगता से तात्पर्य है किसी व्यक्ति या बच्चे में दो या दो से अधिक विकलांगताओं का पाया जाता है।
इस अधिनियम से सम्बन्धित निम्न परिभाषाये दी गयी हैं -
1. यह अधिनियम राष्ट्रीय स्वपरायणता (Autism), प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, मानसिक मंदता और बहु निःशक्तता से ग्रसित व्यक्तियों का कल्याण अधिनियम है।
2. 1 अप्रैल से प्रारम्भ होने वाला और आने वाले वर्ष के 31 मार्च को समाप्त होने वाला वित्तीय वर्ष से अभिप्रेरित है।
इस अध्याय के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. R.C.I. तथा PWD के साथ समन्वय स्थापित करना।
2. ऐसे निः शक्त व्यक्ति जो दूसरों पर निर्भर हैं उसे सहायता देना ।
3. मान्यता प्राप्त संस्थाओं और संगठनों को सहायता देना ।
4. पूर्ण सहभागिता समान अधिकार आदि को बढ़ावा देना।
5. विकलांग व्यक्तियों के हित में कार्य करना।
Chapters of National Trust Act 1999 || राष्ट्रीय न्यास अधिनियम के अध्याय
राष्ट्रीय न्यास अधिनियम के अध्याय को 9 भागों में बांटा गया है जो निम्न है
अध्याय - I
इसके अन्तर्गत विकलांगता को 4 भागों में बांटा गया है
- स्वलीनता (Autisum),
- प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Polsy),
- मानसिक मंदता (Mental Retardation ),
- बहुविकलांगता (Multipal Disability)
अध्याय- II
निः शक्त व्यक्ति पक्षाघात, व्यक्ति से आशय ऐसा कोई जो स्वलीनता, मानसिक मंदता प्रमस्तिष्कीय या बहुविकलांगता से ग्रसित है उसे समाज में समान अधिकार दिये जाने से है।
अध्याय- III
ऐसा कोई व्यक्ति जो दो या दो से अधिक विकलांगता से ग्रसित हो उनके समस्या का समाधान करने का प्रयास इस अध्याय के अन्तर्गत किया जाता है।
अध्याय - IV
न्यास की धारा- 3 उपधारा-1 के अन्तर्ग गठित राष्ट्रीय स्वपरायणता, प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात, मानसिक मंदता तथा बहु निः शक्तता के बारे में बताया गया है।
अध्याय - V
राष्ट्रीय न्यास अधिनियम के धारा-3 1999 के अन्तर्गत निगमन का प्रबन्ध किया गया है।
अध्याय- VI
केन्द्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यास में उन्हीं व्यक्ति को नियुक्त किया जायेगा जिनके पास इन चारों विकलांगता
(Autism, M.R, C.P, M.D) के क्षेत्र में अनुभव व योग्यता हो।
अध्याय- VII
राष्ट्रीय न्यास अधिनियम धारा-3 में न्यास के उद्देश्य की चर्चा की गयी है। निः शक्त व्यक्तियों को यथासम्भव जीवन जीने के लिए उसे अन्दर इस या पास स्वतन्त्र और पूर्ण समुदाय के रहने की स्वतंत्रता देना अध्याय का मुख्य उद्देश्य बताया गया है ।
सातवेंअध्याय के अन्तर्गत उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- निः शक्त व्यक्तियों के परिवार में किसी प्रकार की संकट की अवधि के दौरान सेवायें उपलब्ध कराना ।
- निः शक्त व्यक्ति के माता-पिता अथवा संरक्षक के मृत्यु के दशा में देखभाल का उपाय करना ।
- उन निः शक्त व्यक्तियों की सहायता करना जिनके परिवार में मदद करने वाला अथवा सहायता देने वाला कोई दूसरा व्यक्ति नहीं है।
- निः शक्त व्यक्तियों को संरक्षण की आवश्यकता होने पर उनके लिए सुरक्षा का प्रबन्ध कराना।
अध्याय VII
इस अध्याय के अन्तर्गत राष्ट्रीय न्यास में पंजीकरण के अलग-2 संघ बनाने की प्रक्रिया का उल्लेख है।
अध्याय- IX
राष्ट्रीय न्यास के अधिनियम की धारा-14 में निः शक्त व्यक्तियों की देखभाल हेतु संरक्षक की नियुक्ति रखे जाने के प्रावधान को बताया गया है।
Rehabilitation Council of India [R.C.I]
भारतीय पुनर्वास परिषद (आर सी आई) को 1986 में पंजीकृत समाज के रूप में स्थापित किया गया था। सितम्बर, 1992 को आरसीआई अधिनियम संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था और यह 22 जून 1993 को एक सांविधिक निकाय बन गया। इसे बनाने के लिए 2000 में संसद द्वारा अधिनियम में संशोधन किया गया। व्यापक हैं। विकलांगों के लिए 1981 को अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया तभी से भारत सरकार विकलांगों के पुर्नवास पर पूरा ध्यान केन्द्रित कर रही है। प्रशिक्षित मानव संसाधनों की कमी के कारण देश में पुर्नवास सेवाओं का आपेक्षित विस्तार नहीं हुआ। इस क्षेत्र में कुछ संस्थायें प्रशिक्षण कार्य तो कर रही थी पर न तो इनके पाठ्यक्रमों में कोई समानता और न ही परस्पर संयोजन। इन कमियों को ध्यान रखकर बेहतर कार्यक्रमों को बनाने के लिए 1986 में भारतीय पुर्नवास परिषद का गठन किया जिसके निम्नलिखित उत्तरदायित्व बनाये गये हैं-
- प्रशिक्षण नीति कार्यक्रम बनाना ।
- प्रशिक्षण कार्यक्रमों को संचालित करने वाली संस्थाओं को मान्यता देना।
- पुर्नवास सवसायिकों का केन्द्रीय पुर्नवास पंजिका में उनका पंजीकरण करना और रख-रखाव करना ।
- निः शक्तला के क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यवसायिकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का संचालन करना ।
- विशेष शिक्षा एवं पुर्नवास के अनुसंधान को बढ़ावा देना ।
- पुर्नवास व्यवसायिकों के प्रशिक्षण को नियमित करने के लिए तथा केन्द्रीय पुर्नवास को बनाये रखने एवं विशेष आवश्यकता वाले लोगों को पुर्नवास से जोड़ने के लिए भारतीय पुर्नवास बनाया गया। जिसे कहा जाता संक्षेप में R.C.I act 1992 है।
बहारुहल इस्लाम समिति के सिफारिश पर परिषद को कानूनी दर्जा देने के लिए December 1991 को संसद में -एक विधेयक पारित किया गया जिसे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सूचित किया 22 June 1992 को अधिसूचित किया।
इस Act में निम्नलिखित विकलांगताओ पर विशेष ध्यान दिया गया अर्थात् RCI Act के अन्तर्गत विकलांगता को चार भागों में बांटा गया है
(i) Visual Impairment
(ii) Hearing Impairment
(iii) Mental Retardation
(iv) Live Locomotor Disability
भारतीय पुर्नवास परिषद के उद्देश्य भारतीय पुर्नवास परिषद के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(i) निःशक्त जनों के पुर्नवास के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं नीतियों को सुनिश्चित करना ।
(ii) भारतीय पुर्नवास परिषद एक उच्चस्तरीय पाठ्यचर्या संचालित किया तथा विकलांगता के क्षेत्र में कार्यरत लोगों के लिए व्यवसायीकरण कराना ।
(iii) निःशक्त व्यक्तियों से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के व्यवसायिकों को शिक्षण प्रति प्रशिक्षण के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करना ।
(iv) केन्द्रीय स्तर पर पुर्नवास के क्षेत्र में मान्यताप्राप्त रखना तथा व्यक्तियों का लेखा-जोखा उन्हें देश के किसी भी भाग में कार्य करने की मान्यता देना।
(v) उन संस्थानों से सहयोग और सामजस्य रखना जो निः शक्त जनों के पुर्नवास में सतत् शिक्षा प्रदान कर रही है।
(vi) विश्वविद्यालय या स्वयंसेवी संस्थाओं (N.G.O.) द्वारा आधार पर प्रदान की गयी डिग्री, डिप्लोमा Cirtificate पाठ्यक्रम को मान्यता देना।
उपरोक्त सभी के साथ - 2 भारतीय पुर्नवास परिषद को पुर्नवास शिक्षा में शोध करने का उत्तरदायित्व भी है। भारतीय पुर्नवास परिषद पुर्नवास के क्षेत्र में प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं विभिन्न प्रकार के विकलांगता के क्षेत्र में संचालन ही नहीं करती अपितु इसके अन्तर्गत मान्यता प्राप्त संस्थायें शिक्षण तथा प्रशिक्षण द्वारा पुर्नवास के क्षेत्र मानव संसाधनों का विकास कर रही है।
Unit 1: Understanding Disability
1.1 Historical perspectives of Disability - National and International & Models of Disability || विकलांगता के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य - राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय और विकलांगता के मॉडल
1.2 Concept, Meaning and Definition - Handicap, Impairment, Disability, activity limitation,
habilitation and Rehabilitation || अवधारणा, अर्थ और परिभाषा - विकलांगता, हानि, विकलांगता, गतिविधि सीमा, पुनर्वास और पुनर्वास
1.3 Definition, categories (Benchmark Disabilities) & the legal provisions for PWDs in India ||भारत में दिव्यांगों के लिए परिभाषा, श्रेणियां (बेंचमार्क विकलांगताएं) और कानूनी प्रावधान
1.4 An overview of Causes, Prevention, prevalence & demographic profile of disability: National and Global || विकलांगता के कारण, रोकथाम, व्यापकता और जनसांख्यिकीय प्रोफ़ाइल का अवलोकन: राष्ट्रीय और वैश्विक
1.5 Concept, meaning and importance of Cross-Disability Approach and interventions || क्रॉस-विकलांगता दृष्टिकोण और हस्तक्षेप की अवधारणा, अर्थ और महत्व
Post a Comment
0 Comments