Locomotor Disability & Poliomyelitis Cerebral Palsy/Muscular Dystrophy || लोकोमोटर विकलांगता पोलियोमाइलाइटिस, सेरेब्रल पाल्सी / गांसपेशी दुर्तिकार
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गामक अक्षमता (Locomotor Disability)
गामक अक्षमता एक ऐसी विकलांगता है। जिसे सामान्य तौर पर देखा जा सकता है व्योंकि जब कोई व्यक्ति किसी चोट या दुर्घटना का शिकार हो जाता है तो उसका प्रभाव प्रभावित अंग पर स्पष्ट दिखाई देता है।
गामक अक्षमता का तात्पर्य है व्यक्ति की बैठने-उठने, चलने, कूदने के साथ-साथ किसी वरतु तक पहुंचने, पकड़ने, उठाने एवं ले जाने में कठिनाई का होना। अर्थात ऐसी सगस्याओं से ग्रसित व्यक्ति को गागक अक्षग व्यक्ति कहा जा सकता है।
गामक अक्षमता जन्मजात भी हो सकती है अथवा जन्म के उपरांत किसी भी अवस्था में हो सकती है। जन्मजात गामक अक्षमता के अंतर्गत शिशु का पांव टेढ़ा, मुड़ा हुआ तथा अविकसित अंग वाला हो सकता है। यह रामरयाएं भविष्य में गामक अक्षमता का गंभीर रूप ले राकती हैं।
अंगों की गति में प्रतिबंध यह एक ऐसी अवस्था है, जिरागें शारीरिक क्षति के कारण व्यक्ति की हड्डियों, गांरापेशियों एवं जोड़ो को सामान्य रूप से कार्य करने में बाधा हो।
भारतीय पुनर्वास परिषद 1992 के अनुसार
"व्यक्ति की अस्थियों, मांसपेशियों तथा नसो के क्षतिग्रस्त होने के कारण उसकी भुजाओं अंगो या शरीर के अन्य भागों की क्रियाओं में सीमितता को गानक अक्षमता कहते हैं।"
अतः कंकाल तंत्र एवं गामक क्रियाकलाप से संबंधित कमियां एवं समस्याएं शारीरिक अक्षमता को दर्शाती हैं। गामक अक्षमता शरीर की रचना और कार्य को प्रभावित करती है जिसके कारण गामक क्रियाकलाप सीमित हो जाते हैं।
पोलियो (Poliomyelitis)
पोलियो, वायरस संक्रमण से होने वाली असमानता है। पोलियो वायरस की रीढ़ की हड्डी की एन्टीरियर हार्नसेल को क्षतिग्रस्त कर देता है। जिसके फलस्वरूप अक्षमता हो जाती है। सर्दी-जुकाम, दस्त से ग्रसित एवं कमजोर बच्चों को वायरस से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। पोलियो जन्म से 5 वर्ष तक के बब्बों को होता है। परंतु 6 मार्च से 2 वर्ष की आयु के बच्चों को अधिकत्तर होता है। 18 महीने तक की उम्र में बच्चे अधिक संख्या में पोलियो से ग्रसित होते हैं।
वायरस का संक्रमण गति को नियंत्रित करने वाली नाड़ियों की कोशिकाओं को प्रभावित करता है। ऐरो वातावरण जहां पोषण की स्थिति खराब तथा शौचालय की कमी होती है। वहां पोलियो ग्रस्त बच्चे के मल से यहां वायरस स्वस्थ बच्चे के मुंह तक पहुंच कर प्रभावित करते हैं। यह वायरस पीने के पानी या खाद्य पदार्थों में मक्खियों द्वारा या गंदे हाथों द्वारा पहुंचकर दूसरे बच्चों को प्रभावित कर देते हैं। यदि वातावरण अच्छा है तो भी इसके वायरस ठीक एवं खांसी द्वारा फैलते हैं। यह वायरस स्पाइनल कार्ड के एटीरियर हार्न सेल के ग्रे मैटर को भेजता है। इसी एटीरियर नर्व की क्षति के कारण मांसपेशियों में तनाव सिथिल या कम हो जाता है।
पोलियो के मुख्यतः तीन वायरस होते हैं-
- लियॉन (Leon)
- लैंलिग (Lansing)
- ब्रॉन्शाइड (Bronshide)
यह वायरल संक्रामक रोग जिससे एटीरियर हार्न रोल से जुड़ी मांसपेशियों में अल्पकालीन अथवा स्थाई रूप से क्षति हो जाती है, उसे लकवा या बाल पक्षाघात भी कहते हैं। कभी-कभी इस वायरस से जानलेवा बीमारी भी हो सकती है जिससे कग से कग 2 बच्चों की मृत्यु हो जाती है। ऐसी स्थिति में बच्चे सुचारू रूप से स्वसन क्रिया नहीं कर सकते हैं।
पोलियो से बचाव :- जो बच्चे अस्पताल में पैदा होते हैं उन्हें जन्म के समय ही पोलियो की खुराक पिला दी जाती है। परंतु जो बच्वे घर पर या गांव में पैदा होते हैं. उन्हें जन्म के 6 सप्ताह के अंतर्गत मोलियो की खुराक पिला देनी बाहिए। इस प्रकार पोलियो की रोकथाम हेतु रागय सारणी के अनुसार बच्चे का टीकाकरण पूरा होना चाहिए।
- पोलियो के टीकाकरण द्वारा प्रतिरक्षण राबरो महत्वपूर्ण है। पोलियो की दवा जन्ग के रामय से 6 राप्ताह, 10 राप्ताह, 14 सप्ताह, में प्राथमिक खुराक एवं 1 वर्ष में बूस्टर खुराक अवश्य पिलाना चाहिए।
- मां का दूध बच्चे को पोलियो के साथ साथ अन्य सभी प्रकार के संक्रमण से बचाता है। अतः माँ का दूध पिलाना जरूरी होता है।
- भोजन एवं पानी की स्वच्छ व्यवस्था होनी बाहिए। अतः भोजन सामग्री को मक्खियों से बचाकर रखने हेतु सलाह दिया जाता है ।
- व्यक्तिगत सफाई पर विशेष बल दिया जाना चाहिए । भोजन से पहले एवं बाद में हाथ धोने जैसी जरूरतों से बच्चों को अवगत कराना आवश्यक होता है ।
- मल मूत्र निष्कासन का सही प्रबन्ध होना चाहिए, क्योंकि पोलियोग्रस्त बच्चे के मल से ही पोलियो वायरस भोजन, पानी इत्यादि के साथ स्वस्थ बच्चे के मुँह तक पहुँचता है।
- 6 माह से 2 वर्ष तक के बच्चों की विशेष सफाई एवं अच्छे पोषक खाद्य पदार्थ देना चाहिए क्योंकि कमजोरी की स्थिति में संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
- यदि बच्चे को रादर्दी बुखार और दरत हो तो पोलियो वैक्सीन नहीं देनी चाहिए ।
- पोलियो वायरस के कारण जब सर्दी जुकाम होता है तो उस स्थिति में कोई इंजेक्शन नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे उत्तेजना होने की आशंका रहती है।
- अतः साधारण सर्दी खाँसी दिखने पर सूई के लिए तत्परता नहीं दिखानी चाहिए, इससे लाभ के बजाय हानिहो सकती है ।
- यदि पोलियो की आशंका हो तो बच्चे की मालिश नहीं करनी चाहिए ।
पुनर्वास कार्यकर्ता का कर्तव्य होता है कि वे जन जन तक इस संदेश को पहुँचायें कि पोलियो की रोक थाम हेतु मुख के द्वारा पोलियो ड्राप्स के रूप में दिया जाता है। पोलियो ड्राप्स शरीर में पोलियो वायरस से लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है। ये प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर उपलब्ध होता है तथा निःशुल्क दिया जाता है ।
प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Palsy)
एक प्रसिद्ध चिकित्सक विलियम लिट्स ने 1760 ई० में पाई जाने वाली ऐसी असमानता से संबंधित चिकित्सा की चर्चा की थी, जिसमें हाथ एवं पैर की मांसपेशियों में कड़ापन पाया जाता है। ऐसे बच्चों को वस्तु पकड़ने तथा चलने में कठिनाई होती थी। जिसमें हाथ एवं पैर की मांसपेशियों में कड़ापन पाया जाता है। ऐसे बच्चों को वस्तु पकड़ने तथा चलने में कठिनाई होती थी, जिसे लंबे समय तक लिट्स रोग से जाना जाता था। अब इसे प्रमस्तिष्क पक्षाघात कहा जाता है।
लिट्स ने इसका कारण जन्म के समय ऑक्सीजन की कमी बताया। लेकिन 1977 ईस्वी में सिगमंड फ्रायड ने लिट्स से असहमति व्यक्ति की तथा कहा कि इसका कारण भ्रूण का कुप्रभावित विकास है।
मस्तिष्क यह पक्षाघात को अंग्रेजी में सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy) कहते हैं। सेरेब्रल का अर्थ मस्तिष्क के दोनों भाग तथा पाल्सी का अर्थ किसी ऐसी असमानता या क्षति से है जो शारीरिक गति के नियंत्रण को नष्ट करता है। यह जीवन की आरंभिक वर्षों में दृष्टिगोचर होता है। अंतः यह असामान्यताए मांसपेशीय शिराओ की कठिनाइयों के फल शुरू होती है। जिसके कारण गति पर नियंत्रण पाने में मस्तिष्क की योग्यता कम अथवा खत्न हो जाती है। कुछ प्रमरितष्क किए पक्षाघात वाले व्यक्तियों में मिर्गी तथा मंदबुद्धिता भी पाई जाती है।
प्रमस्तिष्क यह पक्षाघात का अर्थ है मस्तिष्क का लकवा। यह मस्तिष्क क्षति बच्चे के जन्म से पहले, जन्म के समय तथा शिशु अवस्था में हो सकती है। इसमें जितनी ज्यादा मस्तिष्क की क्षति होगी उतना ही अधिक बच्चे में मानसिक क्षमता बढ़ जाती है। अतः स्नायु तांत्रिक दोष के कारण होने वाली स्थिति जिसमें मस्तिष्क क्षतिग्रस्त होने से शरीर संचालन एवं गति प्रभावित होती है। प्रमस्तिष्क पक्षाघात कहलाती है।
परिभाषा :-
बैट्सो एवं पैरेट 1986 के अनुसार प्रमस्तिष्क पक्षाघात्त एक जटिल, अप्रगतिशील अवस्था है जो बच्चे की परिपक्कता से पहले हुई मस्तिष्क की क्षति के कारण उत्पन्न होती है, जिसके फल शुरू मांसपेशियों में सामंजस्य की कमी तथा गामक अपंगता हो जाती है। इसके बावजूद भी संचालन एवं शरीर की स्थितियों तथा उससे जुड़ी समस्याओं को थोड़ा सुधारा जा सकता है।
प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के कारण (Causes of Cerebral Palsy):-
प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।
- प्रायः प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात के मुख्य कारण गर्भावस्था से जुड़े होते हैं। जिस समय शिशु गर्भ में पल रहा होता है।
- अपरिपक्व जन्म प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात का जोखिम भरा कारक होता है। गर्भवती माँ को गम्भीर रक्तस्राव होने से मस्तिष्क अपरिपक्व हो सकता है जिसके परिणामस्वरूप प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात हो सकती है ।
- जो बच्चे अपरिपक्व अर्थात समय से पूर्व जन्म लेते हैं उनमें फेफड़े का विकास ठीक से न होने के कारण गम्भीर श्वसन समस्या हो सकती है। ऐसा होने से मस्तिष्क को उचित मात्रा में ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात हो सकता है ।
- बहुत से प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात से ग्रसित व्यक्तियों के मस्तिष्क में पाये जाने वाले सफेद पदार्थ की असामान्यता देखी गयी है, जो मस्तिष्क से पूरे शरीर को संदेश देने में सहायक होते हैं। परन्तु विशेषज्ञों का मनना है कि राभी अपरिपक्व जन्म लेने वाले बच्चे प्रमरितष्कीय पक्षाघात से प्रभावित नहीं होते हैं ।
- ऐसा बहुतायत विश्वास किया जाता है कि प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात का प्रमुख कारण प्रसव के समय बच्चे को ऑक्सीजन न मिल पाने से है। यदि प्रमस्तिकीय पक्षाघात का कारण जन्म के समय आक्सीजन न मिल पाने से होगा तो बच्चे में निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं जैसे- दौरा पड़ना, चिड़चिड़ापन, घबराहट, श्वसन समस्याएं, खाने की समस्याएं, सुस्ती इत्यादि ।
- ऐसा कुछ ही स्थितियों में होता है कि कठिन प्रसव के दौरान प्रासविक दुर्घटना के कारण मस्तिष्कीय क्षति हो जाए और परिणाम स्वरूप प्रनस्तिष्क पक्षाघात हो जाए। ऐसा होने से प्रनस्तिष्क पक्षाघात के लक्षण शीघ्र ही दिखने लगते हैं।
- बच्चे की ऐरी दुर्घटना, जिरामें मरितष्क के बाहरी भाग में रक्त स्राव होने लगे तो उसके परिणाम रवरूप भी प्रमस्तिष्क पक्षाघात हो सकता है।
प्रमस्तिष्क पक्षाघात के प्रकार:-
इस अवस्था का वर्गीकरण करने की कई पद्धतियां हैं। इसका वर्गीकरण करने के लिए अलग-अलग संदर्भ तथा निष्कर्ष हैं। जिसके अनुसार प्रमस्तिष्क पक्षाघात का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है।
1. तीव्रता के प्रमाण के अनुसार वर्गीकरण
2. प्रभावित अंग के अनुसार वर्गीकरण
3. चिकित्सकीय लक्षणों के अनुसार वर्गीकरण
तीव्रता के प्रमाण के अनुसार वर्गीकरण-
इसके अनुसार व्यक्ति में क्षतिग्रस्तता की गंभीरता को ध्यान में रखकर प्रमस्तिष्क पक्षाघात का वर्गीकरण किया जाता है। जिसके अनुसार इसे तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।
अ. अति अल्प प्रमस्तिष्क पक्षाघात: इसमें गामक तथा शरीर स्थिति से संबंधित अक्षमता न्यूनतम होती है। यह पूर्णता स्वतंत्र होते हैं। परंतु सीखने में समस्या हो सकती है।
ब. अल्प प्रमस्तिष्क पक्षाघात इसमें गामक तथा शरीर स्थिति से संबंधित अक्षमता का प्रभाव अधिक होता है। बच्या पुनर्वास सेवाओं तथा उपकरणों की मदद से बहुत हद तक विकसित हो सकता है तथा आत्मनिर्भर हो सकता है।
स. गंभीर प्रमस्तिष्क पक्षाघात: इसनें गामक तथा शरीर स्थिति से संबंधित अक्षमता पूर्णतया प्रभावित होती है। और इससे बच्चे को दूसरो पर बहुत अधिक निर्भर रहना पड़ता है।
प्रभावित अंगों के अनुसार वर्गीकरण-
बच्चे तथा व्यक्ति के प्रभावित अंगों के अनुसार प्रमस्तिष्क पक्षाघात को निम्न भागों में वर्गीकृत किया गया है।
- मोनोप्लीजिया- इसके अन्तर्गत आने वाले प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात में कोई एक हाथ या एक पैर प्रभावित होते हैं । आमतौर पर कोई भी एक हाथ प्रभावित होता है ।
- हेमीप्लीजिया- इसमें व्यक्ति के एक ही तरफ के हाथ और पैर दोनों एक साथ प्रभावित हो जाते हैं, जिससे इस अवरथा को हेगीप्लीजिया कहते हैं ।
- डाईप्लीजिया- इसमें ज्यादातर दोनों पैर या कभी कभी दोनों हाथ में भी प्रभाव दिखता है। इसे डाईलीजिया कहते हैं ।
- पैराप्लीजिया- इसमें व्यक्ति के कमर के नीचे का भाग अथवा दोनों पैर प्रभावित होते हैं जिससे इस अवस्था को पैराप्लीजिया कहा जाता है ।
- क्वाड्रिप्लीजिया- इसमें व्यक्ति के दोनों हाथ एवं दोनों पैर अर्थात पूरा शरीर प्रभावित होता है। अतः इसलिए इस अवस्था को क्वाड्रिप्लीजिया कहा जाता है ।
चिकित्सकीय लक्षणों के अनुसार वर्गीकरण-
प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात से ग्रसित प्रत्येक व्यक्ति की समस्या एवं लक्षण प्रायः अलग- अलग होते हैं। अतः चिकित्सकीय लक्षणों अनुसार इसे मुख्यतः चार भागों में वर्गीकृत किया जाता है, जो निम्नलिखित हैं ।
- स्पास्टीसिटी (Spasticity) इतका अर्थ यह है कि कड़ी या तनी हुई मांरापेशियों में गामक कुशलताएं प्राप्त करने में कठिनाई और धीमापन होता है। बब्वे सुस्त एवं भद्दे दिखते हैं। गति बढ़ने के साथ मांसपेशीय तनाव बढ़ने लगता है । क्रोध या उत्तेजना की स्थिति में मांसपेशियों का कड़ापन और भी बढ़ जाता है। पीठ के बल लेटने पर बच्चों का सिर एक तरफ घुमा हुआ होता है और पैर अन्दर की ओर मुड़ा होता है ।
- एथेटोसिस (Athetosis) इसमें मांसपेशीय तनाव गति के साथ बदलता रहता है। एथेटोसिस का अर्थ है अनियंत्रित गति । बच्चा जब अपनी इच्छा से कोई अंग संचालन करना चाहता है तो उसका शरीर अनियंत्रित गति करनेलगता है। जिससे मांसपेशीय तनाव लगातार बदलता रहता है। एथेटोसिस से प्रभावित बच्चे नन्हें बच्चों की तरह लचीले दिखते हैं ।
- एटैक्सिया (Ataxia) इसका अर्थ है अस्थिर और अनियमित गति का होगा। इसमें बच्चों का संतुलन खराब होता है। ऐसे बच्चे बैठने या खड़े होने पर गिर जाते हैं। इसमें मांसपेशीय तनाव कम होता है तथा गामक विकास पिछड़ा होता है।
- मिश्रित (Mixed Type) स्पास्टिसिटी और एथेटोसिस दोनों में दिखने वाले लक्षण जब किसी बच्चे में मिले हुए दिखते हैं तो मिश्रित प्रकार का प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात कहलाता है।
मांसपेशिय क्षरण (Muscular dystrophy):
मांसपेशियां क्षरण सर्वप्रथम 1890 में पहचानी गई थी। एक वंशानुगत बीमारी है। जो धीरे धीरे उम्र के साथ बढ़ती रहती है। यह स्नायु मांसपेशी विकलांगता के समूह में आती है। जिसमें मुख्य आधारित रूप से गामक नर्व कोशिका रीढ़ रज्जु से पेशी को जाने वाले तंतु एवं स्नायु तंत्रीय जोड़ जो आवेग को रासायनिक प्रविधियों के द्वारा तंतुओं तक पहुंचाता है ।
इसे मायोपैथी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें बीमारी अथवा असमानता से मांसपेशी क्रियाएं अवरुद्ध हो जाती हैं। यह पूर्ण रूप से सभी मांसपेशियों को प्रभावित नहीं करता बल्कि कुछ भी भाग जो उसके संपर्क में आते हैं वही प्रभावित होते हैं।
यह एक ऐसी विकृति है जिसमें मांसपेशियों का क्षरण होता है। जिसके परिणाम स्वरूप पेशियों का कार्य प्रभावित हो जाता है। यह अलग-अलग उम्र में अलग-अलग रूप में होती है। यह कुछ बच्चों में शैशवास्था तथा कुछ में किशोरावस्था में होती है। इसमें बाल्यावस्था से ही मांसपेशियों की कमजोरी लगातार बढ़ती रहती है। यह रोग पैदाइशी नहीं होते हैं। इस रोग में बच्चों के दोनों पैर प्रभावित होते हैं। और बाद में शरीर के ऊपरी अंग प्रभावित होते हैं।
इस रोग के कारण बच्चे की चाल असामान्य हो जाती है। जिससे चलने में कठिनाई होती है। श्वसन तंत्र की उचित संचालन के अभाव में श्वसन भी प्रभावित होती है। धीरे-धीरे यहां तंत्रिका तंत्र को भी प्रभावित कर देती है।
मानव शरीर की मांसपेशियों क्षरण के साथ-साथ जब तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है तो उसे मांसपेशी क्षरण अथवा मायोपैथी कहते हैं। यह एक वंशानुगत बीमारी है। जो बच्चे की माता पिता द्वारा लाया जाता है। यह पुरुषों को गहिलाओं की अपेक्षा अधिक होती है। यह एक ही परिवार में दो या तीन बच्चों को प्रभावित करती है। तथा सात पीढ़ी तक प्रभावित कर सकती है।
मांसपेशी क्षरण के प्रकार - लक्षगों, उम्र एवं प्रभाव के आधार पर मांसपेशी क्षरण के निम्नलिखित प्रकार हैं
- ड्यूशन मांसपेशी शरण (Duchenne Muscular Dystraphy)
- अर्ब जुवेनाइल क्षरण (Erb's Juvenile Dystraphy)
- इन्फेंटाइल टाइप अथवा फेसिओ ह्यूमरो स्कैपुलर टाइप (Infantile Type or Facio Humero Scapular Type)
ड्यूशन मांसपेशी शरण (Duchenne Muscular Dystraphy) -
यह 3 वर्ष से 8 वर्ष के बीच में होने वाली बीमारी है। जो कमजोर नली के जोड़ को मांसपेशियों तक पहुंचती है। इस प्रकार की मांसपेशियों के चरण में मांसपेशियों की जगह चर्बी जमा होने के कारण उनके आकार में वृद्धि होती है इस प्रकार के क्षरण में बच्चे को उठने के लिए कहा जाता है तो वह रार्वप्रथम हाथ को जमीन पर रखता है, फिर हाथ उठाकर घुटने के जोड़ पर रख कर उठता है। जिरो गोवर्रा रााइन के नाम से जाना जाता है। इसकी चाल भी असामान्य होती है। इस चाल को बैडलिंग चाल के नाम से भी जाना जाता है, कभी-कभी स्वसन क्रिया प्रभावित होने से बच्चे की मृत्यु भी हो जाती है। यह एक जानलेवा बीमारी है।
ड्यूशन मांसपेशी शरण लक्षण :-
ज्यूशन मांसपेशियां क्षरण की पहचान के लिए बच्चों में निम्नलिखित लक्षणों को देखना चाहिए। इन अक्षरों की पूर्णता पहचान 5 से 10 वर्ष की अवस्था में की जा सकती है।
- थोड़ी दूर बलने पर थकान महसूस करना।
- पंजे के बल चलना।
- कुछ बच्चे मंदबुद्धि भी होते हैं।
- चलते सनय जल्दी जल्दी एवं बहुत ही थोड़ी जगह पर पैर रखते हैं।
- बच्या लुंज पुंज होता है जिरारो दौड़ने पर गिर सकता है।
- रोढ़ की हड्डी पर गंभीर मोड़ पैदा हो सकता है।
अर्ब जुवेनाइल क्षरण (Erb's Juvenile Dystraphy)
इस प्रकार की मांसपेशी क्षरण की प्रारंभिक अवस्था 6 से 12 वर्ष के बीच होती है, लेकिन कभी-कभी यह 12 से 16 वर्ष के बाद भी हो सकती है। यह समस्या बहुत ही धीरे-धीरे बढ़ती है। यह पुरुष एवं स्त्री दोनों में होती है। यदि उचित रूप से देखकर एक किया जाए तो रोगी लगभग अपना जीवन ठीक से जी सकता है।
अर्ब जुवेनाइल क्षरण लक्षण :-
इस प्रकार के मांसपेशियां क्षरण में निम्न लक्षण होते हैं। जिनका सही समय पर पहचान करके उचित देखरेख एवं प्रबंधकीय कदम उठाए जा सकते हैं।
- कूल्हे की मांसपेशियों का क्षरण होना ।
- स्पाइनल की मांसपेशियों का क्षरण होना।
- चाल भी असामान्य होती है।
- समस्त मांसपेशियां आंशिक रूप से प्रभावित होती हैं।
इनफेन्टाइल टाइप मांसपेशी क्षरण (Infantile Type or Facio Humero Scapular Type) :
कभी-कभी 10 वर्ष के बच्वों में भी हो जाता है। यह मुख्य रूप से छोटे बच्चों को प्रभावित करती है।
इनफेन्टाइल टाइप मांसपेशी क्षरण लक्षण :-
इस प्रकार की मांसपेश क्षरण को मिश्रित मासपेशीय क्षरण भी कहते हैं।
- आंख पूरी तरह से बंद नहीं होती।
- बोलते समय मुंह खुला का खुला रह जाता है।
- कंधे एवं भुजाओं की मांसपेशियों में भी क्षरण हो जाता है।
- ओष्ठ नोटे, कमजोर एवं लार युक्त हो जाते हैं।
Unit 2: Definition, Causes & Prevention, Types, Educational Implication, and Management
2.2 Visual Impairment-Blindness and Low Vision || दृश्य हानि-अंधता और कम दृष्टि
2.3 Hearing Impairment-Deafness and Hard of Hearing || श्रवण हानि-बहरापन और सुनने में कठिनाई
2.4 Speech and language Disorder || वाणी और भाषा विकार
2.5 Deaf-blindness and multiple disabilities || बहरा-अंधता और बहु-विकलांगता
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